नई दिल्ली,। 15 जून 25 । आईपी यूनिवर्सिटी अपने द्वारका कैम्पस में भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) के लिए एक केंद्र शुरू करने जा रही है। इस केंद्र का नाम ‘इन-सिटू सेंटर फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम एंड टेक्नोलॉजी इनोवेशन’ (सीआईकेटीएसआई) होगा, जो शुरुआत में यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एजुकेशन से स्व-वित्तपोषित मोड में चलेगा।
स्कूल की डीन प्रोफेसर सरोज शर्मा इस केंद्र का नेतृत्व करेंगीं।प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि यह केंद्र बहु-विषयक आउटपुट प्रदान करने और विभिन्न विषयों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा। इसके लिए एक कार्यकारी समिति का गठन किया जाएगा जिसमें विश्वविद्यालय के सभी संबंधित स्कूलों के प्रतिनिधि शामिल होंगे ताकि केंद्र की पहलों का एकीकृत और समग्र विकास सुनिश्चित किया जा सके।
प्रोफेसर शर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आलोक में भारतीय शिक्षा क्षेत्र के उभरते प्रतिमान और आधुनिक शिक्षा में भारतीय ज्ञान प्रणाली के एकीकरण के महत्व पर जोर देने के मद्देनजर इस केंद्र की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है।
इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य शिक्षा, अनुसंधान, नवाचार, सांस्कृतिक उत्थान के लिए एक केंद्र स्थापित करना है; और पारंपरिक ज्ञान को समकालीन प्रगति के साथ जोड़ने के लिए काम करना है। इसके अलावा, केंद्र विभिन्न स्कूलों के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान प्रणाली को शामिल करने, नए पाठ्यक्रम विकसित करने, अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने, कौशल विकास और क्षमता विकास, उद्यमिता और उद्योग सहयोग, डिजिटल प्रलेखन और संरक्षण, समुदाय आउटरीच और सार्वजनिक जागरूकता, वैश्विक ज्ञान कूटनीति सहयोग आदि पर ध्यान केंद्रित करेगा।
विश्वविद्यालय के कुलपति पद्मश्री प्रोफेसर (डॉ.) महेश वर्मा ने कहा कि इस केंद्र की स्थापना भारत के प्राचीन ज्ञान को आधुनिक शिक्षा और अनुसंधान के साथ एकीकृत करने के दृष्टिकोण में निहित है। इसका सार प्रायोगिक शिक्षा, मेंटरशिप और समग्र विकास की विशेषता वाली प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा के अनुरूप है।
यह केंद्र भारतीय ज्ञान प्रणाली के साथ शैक्षणिक अनुसंधान, उद्यमशीलता की प्रगति को बदलने में मदद करेगा, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय ज्ञान प्रणाली में उच्च शैक्षणिक और अनुसंधान उत्कृष्टता, बहु-विषयक शिक्षा और कौशल विकास में आईकेएस का एकीकरण, आईकेएस-आधारित स्टार्टअप और उद्यमशीलता उद्यमों की स्थापना और प्रचार, अनुप्रयुक्त अनुसंधान के लिए उद्योग-अकादमी सहयोग को मजबूत करना, संरक्षण और वैश्विक पहुंच के लिए एक डिजिटल भंडार का निर्माण, बढ़ती अंतरराष्ट्रीय मान्यता और सहयोग, सतत और नैतिक विकास को बढ़ावा देना, सांस्कृतिक उत्थान और मजबूत राष्ट्रीय पहचान आदि शामिल हैं।