नई दिल्ली । 4 जून 2025 । चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना हो सकती है, लेकिन किसी भी व्यवस्था में न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता नहीं होना चाहिए। न्यायाधीशों को किसी भी बाहरी दबाव से मुक्त रहना चाहिए।
CJI ने कहा- 1993 से पहले भारत में जजों की नियुक्ति का अंतिम फैसला सरकार के पास होता था और इस दौरान दो बार ऐसा हुआ जब सरकार ने सीनियर जजों को नजरअंदाज कर किसी और को मुख्य न्यायाधीश बना दिया। वहीं, उन्होंने रिटायर जजों के चुनाव लड़ने पर भी सवाल किया।
CJI गवई लंदन में UK सुप्रीम कोर्ट की ओर से आयोजित राउंड-टेबल में बोल रहे थे। इस चर्चा में भारत से जस्टिस विक्रम नाथ और UK की सुप्रीम कोर्ट की जज बैरोनेस कार और जज जॉर्ज लेगैट भी शामिल हुए।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रेसिडेंट और गवर्नर के लिए डेडलाइन तय करने पर सवाल उठाए। राष्ट्रपति मुर्मू ने पूछा कि संविधान में इस तरह की कोई व्यवस्था ही नहीं है, तो सुप्रीम कोर्ट कैसे राष्ट्रपति-राज्यपाल के लिए बिलों पर मंजूरी की समयसीमा तय करने का फैसला दे सकता है।
मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे। मुर्मू ने राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों, न्यायिक दखल और समय-सीमा तय करने जैसी बातों पर स्पष्टीकरण मांगा।
ये मामला तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। जहां गवर्नर से राज्य सरकार के बिल रोककर रखे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। इसी फैसले में कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सामने आया था।