पश्चिमी-देशों में 80 साल बाद फिर वर्ल्ड वॉर का डर

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   नई दिल्ली  2 जून – दूसरे विश्व युद्ध (1939-45) की समाप्ति को 80 साल बीत चुके हैं, लेकिन वैश्विक शांति की नींव फिर से डगमगाने लगी है।

यूगोव के ताजा सर्वे के अनुसार, अमेरिका और यूरोप के लोग पांच से दस साल में तीसरे विश्व युद्ध की आशंका जता रहे हैं। रूस के साथ बढ़ता तनाव, अमेरिका की विदेश नीति और परमाणु हथियारों का खतरा इस डर की सबसे बड़ी वजह माना जा रहा है।

सर्वे में शामिल 55% लोगों ने माना कि एक और वैश्विक युद्ध संभव है। वहीं, 76% का मानना है कि वर्ल्ड वॉर में परमाणु हथियारों का इस्तेमाल होगा।

लोगों को यह भी डर है कि यह दूसरे विश्व युद्ध के मुकाबले कहीं अधिक विनाशकारी होगा। यूरोप और अमेरिका में लोग अपने देशों को इस युद्ध में शामिल होने की आशंका जता रहे हैं।

सरे विश्व युद्ध की यादें आज भी ताजा

दूसरे विश्व युद्ध की यादें आज भी लोगों के मन में ताजा हैं। सर्वे में शामिल 90% लोग मानते हैं कि इस युद्ध को स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए।

फ्रांस (72%), जर्मनी (70%) और ब्रिटेन (66%) में लोग इस युद्ध के बारे में अच्छी जानकारी रखते हैं, जबकि स्पेन में यह आंकड़ा केवल 40% है। 77% फ्रांसीसी और 60% जर्मन कहते हैं कि उन्हें स्कूल में इस युद्ध के बारे में विस्तार से पढ़ाया गया।

52% लोगों को लगता है कि दुनियाभर में नाजी शासन जैसे अत्याचार आज भी संभव हैं। 60% का मानना है कि अमेरिका या अन्य यूरोपीय देशों में भी यह खतरा मौजूद है।

इस्लामिक आतंकवाद भी बड़ा खतरा

सर्वे में पश्चिमी यूरोप के 82% और अमेरिका के 69% लोगों ने रूस के साथ तनाव को सबसे बड़ा खतरा बताया। लोग मानते हैं कि रूस की सैन्य गतिविधियां और उसकी परमाणु क्षमता वैश्विक स्थिरता के लिए खतरा हैं। रूस के अलावा, इस्लामिक आतंकवाद को भी बड़ा खतरा माना गया है। लोगों का मानना है कि इस पर जल्द काबू पाना जरूरी है। यह डर वैश्विक कूटनीति में बढ़ती दरारों का संकेत है।

66% ने नाटो और 60% ने संयुक्त राष्ट्र को शांति के लिए अहम माना

66% लोगों ने नाटो को युद्ध के बाद शांति बनाए रखने में सबसे बड़ा योगदानकर्ता माना। 60% ने संयुक्त राष्ट्र को भी इस दिशा में महत्वपूर्ण माना। यूरोपीय संघ को भी 56% लोगों ने शांति का एक प्रमुख स्तंभ बताया।

सर्वे में यह भी सामने आया कि जर्मनी में 47% मानते हैं कि पहले की सरकारें नाजी अतीत को लेकर अति-सचेत रही हैं। लेकिन वर्तमान सरकार हाल के संकटों में मजबूत कदम उठाने में नाकाम रही है।

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